बिल्लेसुर बकरिहा–(भाग 25)

भीतर महादेव जी, बाहर पीछे की तरफ़ महावीर जी प्रतिष्ठित थे।


 जब भी बिल्लेसुर गुरुमन्त्र छोड़ चुके थे, फिर भी बकरियों की भेड़िये से कल्याण-कामना किये बिना नहीं रहा गया––मन्दिर में गये। 

उन्हें महादेव जी से महावीर जी अधिक शक्ति वाले मालूम दिये। यह भी हो सकता है कि बाहर महावीर जी के पास जाने से वे गलियारे से जाती हुई बकरियों को भी देख सकते थे। 

अस्तु महावीर जी के पैर छू कर, मन-ही-मन उन्होंने कुछ कहा और फिर अपनी बकरियों का पीछा पकड़ा।

 खेत की हरियाली की तरफ़ लपकती बकरी को हटककर सामने लक्ष्य स्थिर करके बढ़े। मन्नू का पक्का कुआ आया। 

गलियारे में ही खड़े खड़े लग्गा बढ़ाकर गलियारे पर आती पीपल की निचली डाल से टहनियाँ छाँटने लगे। 

टहनियों के गिरते ही बकरियाँ पत्तियों से जुट गईं। 

ज़रूरत भर लच्छियाँ छाँटकर लग्गा डाल के सहारे खड़ा कर बिल्लेसुर कुए की जगत पर चढ़कर बैठे बकरियों को देखते हुए। 

सामने पड़ती ज़मीन थी। बग़ल से एक बरसाती नाला निकला था। चरवाहे लड़के वहीं ढोर लिये इधर उधर खड़े थे। 

बिल्लेसुर को देखा। उनकी बकरियों को देखा। भगाने की सूझी। सयाने लड़कों ने सलाह की। 

बात तै हो गई कि खेदकर नाले में कर दिया जाय । बिल्लेसुर परेशान होंगे, खोजेंगे। मिलेंगी, मिलेंगी; न मिलेंगी, बला से।

 एक ने कहा, पासियों को ख़बर कर दी जाय तो नाले में मारकर निकोलेंगे, कुछ मास हमें भी मिलेगा। 

दूसरे ने कहा, गाभिन हैं, किस काम का मास। फिर भी बकरियों को भगाने का लोभ लड़कों से न रोका गया। सलाह करके कुछ बाहर तके रहे, कुछ बिल्लेसुर के पास गये। 

एक ने कहा, "काका, आओ, कुछ खेला जाय।" बिल्लेसुर मुस्कराये। कहा, "अपने बाप को बुला लाओ, तुम क्या हमारे साथ खेलोगे?" फिर सतर्क दृष्टि से बकरियों को देखते रहे।

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